
2027 मे 2024 को दुहराने का खेल खेला जा रहा है। मै ऐसा कुछ घटनाओं से मिले अनुभवों से कह रहा हूं।
2024 प्रथम चरण के चुनाव के बाद जो अनुमानित परिस्थितियां उत्पन्न हुई थीं वो बेहद चिंताजनक थीं। जिसका अनुमान उस समय कोई नहीं लगा पाया और परिणाम हमारे सामने था। मै उस समय अक्सर कहता था कि परिस्थितियां जटिल हैं जनता का ब्रेनवाश किया जा रहा है, बरगलाया जा रहा है। कन्फ्यूज किया जा रहा है लेकिन किसी को इसपर ध्यान नही था। मेरी इतनी आधिकारिक शक्ति नही थी कि बड़े स्तर पर पब्लिकली बोलूं या दूसरा कोई बड़ा मुझे समझे लेकिन परिणाम हमारे सामने है।
बड़े नेता कहते कि विपक्षी हमे हराने के लिए नही बल्कि हमे चार सौ पार जाने से रोकने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं और ये बात सही भी थी। लेकिन अपने अतिआत्मविश्वास मे अपने ही गलत बात को सत्य होने से रोकने मे असफल रहे।
आज मै ये बात क्यों उठा रहा हूं इसे स्पष्ट करना चाहता हूं। मेरी बात आपको काल्पनिक लग सकती है जैसा कि विपक्षियों को उस समय हमे चार सौ पार जाने से रोकना था। लेकिन विपक्ष ने वो कारनामा कर दिखाया।
एक कार्यकर्ता होने के नाते चुनाव से पहले मैने ये अनुमान लगाया था कि मेरे पीछे कोई लगा है मेरे गतिविधियों पर किसी की नजर है। मै समझ गया था कि हमारे पार्टी के अन्य छोटे-बड़े पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं के साथ भी कुछ ऐसा ही है।
दूसरा अनुमान ये था कि विपक्षी सब जगह मेहनत न कर के कुछ विशेष सीटों पर ठेस पहुंचाए जो हमे जीत के बाद भी दर्द दे और वो सफल रहे। उदाहरण के तौर पर आप सब जानते है कि हम अपने सभी महत्वपूर्ण बूथ हारे सभी महत्वपूर्ण सीट विवादित हुए। और हुआ क्या हम जीते और सरकार बनाए और वे हार कर भी हमे चार सौ पार न जाने का दर्द दिए।।
अब मै मूल बात पर आता हूं जो है 2027 की है,
विपक्षी शान्त हैं लेकिन वे मेढक नीति का प्रयोग इस बार भी करेंगे वे कोई नया शिगुफा जरूर फोड़ेंगे और उनमें से एक शिगुफा फोड़े है शीर्ष नेतृत्व और आम कार्यकर्ता मे मतभेद का ।जैसा कि हम जानते है हम पिछले चुनाव योगी और मोदी के नाम पर लड़े और जीते हैं इसमें आम कार्यकर्ता का कहीं कोई जिक्र नहीं है। पार्टी पदाधिकारी होने के नाते मै आम जनता एवं कार्यकर्ताओं से बराबर मिलता रहता हूं उन सभी के विचारों मे इस बात का असंतोष रहता है। साथ ही ये बात भी सुनने को मिलती है कि लोग आते हैं और मोदी योगी के नाम पर चुनाव जीत जाते है और खून पसीना बहाने वाले आम कार्यकर्ता का कहीं कोई मोल ही नही रहता। इस बात पर शीर्ष नेतृत्व को ध्यान देना चाहिए। अतः चर्चा मे आम कार्यकर्ता भी होना चाहिए।तभी हम विपक्षियों के इस धारदार हथियार को काट पाएंगे। योगी मोदी के नेतृत्व और लोकप्रियता मे शर्तिया कोई कमी नही है यहां तक कि उत्तरोत्तर वृद्धि ही हुई है लेकिन बात ये है कि अगर अर्जुन और कृष्ण जीत रहे हैं तो उनके पीछे उनकी सेना की लड़ाई है हमे इस बात को नजरअंदाज नही करना चाहिए।
सरकार के नीतियों को मूल रूप देने मे सरकारी महकमे का बेहद योगदान रहता है। आम जनता को जितना नेताओं से काम नही पड़ता उतना अधिकारियों से पड़ता है उनका प्रभाव और सरकार पर टिप्पणी आम जनता पर बेहद असरदार होती है विपक्षी वहां भी सेंध लगा रहे हैं। वे अभी से सक्रिय हैं और लोगों का ब्रेनवाश करना शुरू कर दिए हैं। सामान्यतः वे सभी छोटे बड़े समस्याओं को सरकार से जोड़ कर लोगों से चर्चा करते रहते हैं। जो बहुत ही असरदार होता है। इससे बचाने के लिए शीर्ष नेतृत्व तो आएगा नही अतः क्षेत्रीय एवं स्थानीय नेतृत्व को बड़े स्तर पर सक्रिय होना पड़ेगा। मै तो यहां तक कहूंगा कि इस बार शीर्ष नेतृत्व अपनी पूरी लड़ाई क्षेत्रीय एवं स्थानीय नेतृत्व को आगे कर के लड़े ताकि आम कार्यकर्ता मे सांसद और विधायक के प्रति उपजे असंतोष का निराकरण हो और विपक्षी फिर मुंह के बल गिरे।