
जीत हो या हार हो
भ्रस्टाचार पर प्रहार हो
चक्र समय का घूम रहा
स्वल्प का संहार होदेवस्थापना हो चुका
अब देवत्व का प्रसार हो
कुचक्र बाहें फैलाए है
इनका भी संहार होसुमानष कमजोर न हो
कर-करा तूं करता चल
सुभ्र समय है ये भी
विकास के प्रकार रचसेवा,संस्कार और समर्पण
नए तरह से करता चल
सहज किया है सब अबतक
संघर्ष की लकीरें रचता चलविजय, विकास और विस्तार
यही होंगे तेरे चमत्कार
पद विकृत हुआ है तो क्या
संघर्ष का तूं है अवतार
- 05-06-2024